इस पोस्ट मे महाकवि भूषण द्वारा रचित शिवा सौर्य के कुछ पद्यांश लिखे गए है। इसमे छत्रपती शिवाजी महाराज और उनकी वीर सेना के सौर्य की व्याख्या वर्णित है।
यह एक अद्भुत काव्य रचना है इसके तुकांत शब्द स्वर और लय छंद और वीर रस का अनूठा मेल है ।
इस काव्य को पुराने समय का रैप सॉन्ग कह सकते हैं जो वीर रस से भरपूर है ।
छत्रपती शिवाजी महाराज कविता: शिवा सौर्य
साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धरि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है।
भूषण भनत नाद बिहद नगारन के
नदी-नद मद गैबरन के रलत है।
ऐल-फैल खैल-भैल खलक में गैल गैल
गजन की ठैलपैल सैल उसलत है।
तारा सो तरनि धूरि-धारा में लगत जिमि,
थारा पर पारा पारावार यों हलत है।।
भावार्थ:-
इस पद्यांश मे महाकवि भूषण जी कहते है, सरदारवीर शिव जी अपनी चारों प्रकार की सेना को सजाकर और अंग मे उत्साह( जोश ) धरण करके युद्ध को जीतने के लिए प्रस्थान करते है।
कवि जी कहते है की युद्ध के लिए जाते समय नगाड़ों की भयंकर ध्वनि गूंज रही है और मतवाले हाथियों से कान से निकालने वाला द्रव्य नदी और नालों मे बह रहा है। सेना के चलाने से संसार की सभी गलियों मे खलबली मैच गई है और हाथियों की धक्का मुक्की से पर्वत उखड़ते जा रहे हैं।
सेना के चलाने से उड़ने वाला धूल के गुब्बार मे सूरज तारों के समान दिखाई दे रहा है और पृथ्वी के कंपन करने से सागर इस प्रकार हिल रहा है जैसे थाली के ऊपर रखा हुआ पारा हिलता है।