कर लूंगा जमा दौलत ओ ज़र उस के बाद क्या
ले लूँ गा शानदार सा घर उस के बाद क्या !
शे’र ओ सुख़न की ख़ूब सजाऊँगा महफ़िलें
दुनिया में होगा नाम मगर उस के बाद क्या !
मय की तलब जो होगी तो बन जाऊँगा रिन्द
कर लूंगा मयकदों का सफ़र उस के बाद क्या !
होगा जो शौक़ हुस्न से राज़ ओ नियाज़ का
कर लूंगा गेसुओं में सहर उस के बाद क्या !
मौज आएगी तो सारे जहाँ की करूँ मैं सैर
वापस वही पुराना नगर उस के बाद क्या !
इक रोज़ मौत ज़ीस्त का दर खटखटाएगी
बुझ जाएगा चराग़े-क़मर उस के बाद क्या !
उठी थी ख़ाक, ख़ाक से मिल जाएगी वहीं
फिर उस के बाद किस को ख़बर उस के बाद क्या ।।