बचपन की शायरी यादें, अपना गाँव

बचपन की शायरी यादें, अपना गाँव 

ना कुछ पाने की आशा ना कुछ खोने का डर, सारा गाँव अपना साम को वापस घर।

उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते

रोने की वजह भी न थी न हंसने का बहाना था क्यो हो गए हम इतने बडे इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था!!

बचपन की अमीरी का अंदाजा नहीं होगा जनाब, आसमान मे जहाज और पानी मे मेरे नाव चला करते थे ।

समाज की कैद मे पड़ा ये परिंदा है मिलों कभी सिद्दत से मेरे अंदर का बचपना अभी जिंदा है ।

होठों पे मुस्कान थी कंधो पे बस्ता था.. सुकून के मामले में वो जमाना सस्ता था..!!

आज मेले के सारे खिलौने खरीद सकता हूँ पर उनसे खेल नहीं सकता ।

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