Kupit Yagyasaini Kavita: महाभारत कविता Satish Srijan

महाभारत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रसंग चौरस क्रीडा के बाद, पांचाली अपनी पीड़ा को भरे दरबार मे व्यक्त करते हुए कहती है। यह कविता कुलवधू पांचाली के अपमान और दर्द की एक झलक दिखती है।  यह कुपित याज्ञसैनी कविता सतीश सृजन जी द्वारा लिखी गई है आप इसे Raag Vaishnavi के अफिशल यूट्यूब चैनल पर Kupit yagyasaini kavita, या raag vaishnavi kavita सुन सकते है। हमें इस कविता की भाषा-सैली  रामधारी सिंह दिनकर जी के रश्मीरथी से मिलती जुलती लगी आप अपने विचार कमेन्ट करे ।

kupit Yagyasaini Kavita Satish Srijan:

हे भीष्म पितामह, कुछ बोलो?
हे  भीष्म पितामह कुछ बोलो
कुलवधू है तुम्हें पुकार रही
दुर्योधन जो व्यवहार किया
ये तुम सब को क्या लगा सही?

मेरा केश पकड़ कर लाया है,
करता दुशासन दुर्व्यवहार
आर्यों की सब माताओं ने
क्या नहीं दिया कोई संस्कार?

मैंने तो दांव नहीं खेला।
चौसर की शाही क्रीड़ा में
है दोष नहीं, जब कहीं मेरा
तो क्यों में ऐसी पीड़ा में?

संपत्ति ना मैं किसी राजा की
जो हारे मुझको खेल जुआ
दादा तुम तो निति प्रिय हो
तब तू क्यों यू लाचार हुआ?

जब गंगा सुत कुछ कह ना सका
कृष्णा ने राजा से पूछा
दुर्योधन इतना दृष्ट है तो
सम्राट दंड है क्यों छू छा?

द्रोपदी ने बारी बारी से
प्रश्नों का ढेर लगा डाला
धृतराष्ट्र , विदुर और द्रोणा के
मानो मुह ऊपर हो ताला।

आखिर में बरसी पांडव पर,
आखिर में बरसी पांडव पर
किस बूते पर हो मेरे पिया
कुछ कहो भतारों क्या सूझा
मुझको बाजी में लगा दिया!

मछली की आंख वेदना था
वो कर के ब्याह के लाये हो
अर्जुन गाडी वो कहाँ गुम हैं
क्यों ऐसे शीश झुकाएं हो?

जब मीन चक्षु संधान  किया
तब हृदय मेरा हर्ष आया था,
मन ही मन में एहला दी थी
मनचाहा वर जो पाया था।

माँ कुंती ने मुझे बांट दिया
बन गए पति पांचों भाई
दुर्दशा देख ऐसी मेरी
तुम सब को लाज नहीं आयी।

मैं समझी थी बड़ भागन हूँ
रणवीरों की मैं सबला हूँ।
पर अब ऐसा लगता मुझको
डरपोकों की मैं अबला हूँ।satish srijan poem kupit yagyasaini pdf

है गदा? कहा गांडीव कहा।
है गदा, कहा गांडीव कहाँ,
क्या जंग लगी तलवारों को?
सौ-सौ धिक्कार तुम्हें मेरा
धिक्कार तेरे हथियारों को।

अरे घुंघरू बाँध लो, चूड़ी पहनो,
गलियों में नाचो छम छम छम
नहीं बेचारी मुझ को समझो
नैहर से भाई बुलाये हम।

हुआ पांचों का बल क्षीण तो क्या?
मेरे कृष्ण अकेले काफी हैं
उदंड नीचे आताताई को
कभी या देते माफी है।

जो पता लगा मेरे वीरं को।
जो पता लगा मेरे वीरं को
क्षण भर ना देर लगाएंगे
नंगे पैरों ह्रीरणागति से
मेरे वीर कन्हैया आएँगे !

नहीं भगिनी मैं लाचार हूँ
की मधु सूदन मेरा भाई है
लगता है दुशासन, दुर्योधन
तेरी मौत शीर्ष पर आई है।

होती है भृकुटी वक्र जहाँ,
कोहराम वही मच जाता है,
केशव हथियार उठा ले तो
फिर काल भी ना बच पाता है।

जो आये भैया सभा मध्य।
यदि आये भैया सभा मध्य तो
कोई नहीं बच पाएगा
जब चक्रसुदर्शन घूमेगा,
सब मूली सा कट जाएगा।

न बने निपूती माँ तेरी..
ना बने निपूती माँ तेरी
गौरव सूद गण कुछ गौर करो
अतिशय अक्षम में अपराध किया
ना सर, मृत्यु कम और धरो।satish srijan poems

इतना सुनकर जा दुर्योधन।
इतना सूनते गरजा दुर्योधन,
दुशासन देर लगाओ न
निर्वस्त्र करो, पंचाली को
जगह पर मेरी बिठाओ ना।

अग्रज की आज्ञा पाकर के
दुशासन पट को रहा खींच
द्रौपदी अधीर हुई मन में
साड़ी हाथों से रही भीज।

कुछ ना सूझा तब टेर भर।
कुछ ना सूझा, तब टेर भरी
बोली, सुनिए मेरी गिरधारी,
अब कोई नहीं अतिरिक्त तेरे
प्रभु लाज रखो है लाचारी ।

कान्हा की शान निराली है।
कान्हा की शान निराली है
वो दौड़ें दौड़ें आते हैं
जब कोई अर्थ पुकार करे
निर्मल का बल बन जाते हैं
था चक्रसुदर्शन चला दिया
जब गज टेर लगाई थी,
एक की खातिर बस अपनी ठकुरी बिसराई थी
मुट्ठी भर तंदुल के बदले
दो लोग सुदामा पाया था,
एक बार पुरंदर के कारण
ऊँगली पर अचल उठाया था।

अब की द्रौपदी की बारी थी।
अबकी  द्रौपदी की बारी थी,
रो रोकर कृष्ण पुकारी थी
हो गए रास्ते बंद सभी
अब अंतिम राह मुरारी थी।

हुए कृष्ण कृपालु कृष्णा पर।
हुए कृष्ण कृपालु कृष्णा पर
माधव जो करुण पुकार सुनी
जहाँ देखो, साड़ी ही साड़ी
धरती अम्बर तक चिर बुनी ।

अनवरत खींचता रहा चीर
पर छोड़ दूसरा पा न सका
हो गया चूर थककर लेकिन
साड़ी की थाह नहीं लगा सका।

था बहुत अचंभित दुशासन।
था बहुत अचंभित दुशासन
ये नारी है या साड़ी है?
द्रौपदी में हाड़ मांस भी है
की सारी नारी साड़ी है।

मूर्छित होकर गिरा दुशासन।
मूर्छित होकर गिरा दुशासन,
निर्वस्त्र द्रौपदी कर न सका
दश सहस्ती हस्त का बलशाली
शर्मिंदा था, बस मर न सका।

कभी याज्ञसेनी ने नटवर को
साड़ी का टुकड़ा बांधा था,
बदले में आज मुरारी ने
साड़ी में साड़ी नादाँ था।

श्रीकृष्ण भाव के भूखे हैं।
श्री कृष्ण भाव के भूखे हैं,
भक्तों की श्रद्धा प्यारी है,
ऋण चुकता करते ब्याज सहित
माधव की लीला न्यारी।

3 thoughts on “Kupit Yagyasaini Kavita: महाभारत कविता Satish Srijan”

  1. कवि महोदय आपको मेरा हाथ जोड़कर राम राम
    महोदय आपकी रचना में शब्दों की वेदना के द्वारा साक्षात बासुंरी वाले के दर्शन करवा दिए

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  2. शानदार ओर जानदार कविता दिनकर जी की याद आगई।

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